अन्य चुनावी वादों की तरह ओबीसी की 17 जातियों को एससी में सम्मिलित करने का यह फैसला भी राजनीतिक घटनाओं और कोर्ट कचहरी की तारीखों में कहीं गुम हो गया है
स्मरण हो कि तत्कालीन (स. पा ) प्रदेश सरकार ने 2012 में ओबीसी की जातियों को एससी में शामिल करने का आदेश दिया था इस आदेश के बाद यह मामला कोर्ट की चौखट तक पहुंच गया था कोर्ट कचहरी की तारीख को में राजनीतिक घटनाओं ने शासन के इस आदेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया
शायद इस मुद्दे का मेंढक अगली चुनावी बरसात में फिर निकले लेकिन अभी तो इस मामले पर किसी भी राजनीतिक दल और जन सेवकों का कोई भी ध्यान नहीं है
यदि ओबीसी में सम्मिलित इन 17 जातियों को एससी को मिलने वाले आरक्षण का लाभ मिल जाए तो इन जातियों के सामाजिक स्तर में सुधार आ जाएगा जिसकी इन्हें अति आवश्यकता है
ओबीसी की यह 17 जातियों को एससी में सम्मिलित करने का आदेश तत्कालीन प्रदेश सरकार (S.P) ने 2012 में दिया था
मझवार, गोंड, बेलदार, तुरैया की उपजाति कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी तथा मछुआ
चुनावी मैदान में वोट बैंक कि यह गेंद सबसे पहले सन 2004 में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने डाली थी किंतु केंद्र ने राज्य सरकार के इस फैसले को समर्थन नहीं दिया जिसके परिणाम स्वरूप इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस आदेश को खारिज कर दिया क्योंकि किसी भी जाति को अनुसूचित जाति घोषित करने का अधिकार सिर्फ केंद्र के पास होता है
सत्ता में आने के बाद सपा सरकार ने दूसरी बार भी 2012 में
इन 17 ओबीसी जन जातियों को एससी की श्रेणी में शामिल करने का प्रयास किया था तत्कालीन सपा सरकार ने यूपी लोक सेवा अधिनियम 1994 एससी वर्ग में ओबीसी की 17 जातियों को शामिल करने का आदेश जारी किया था किंतु इस आदेश को भी केंद्र सरकार ने अपनी सहमति प्रदान नहीं की।
इन 17 जातियों को एससी में में सम्मिलित करने का निर्णय लिया गया था
उ0प्र0 की 17 पिछड़ी जातियों (कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी तथा मछुआ) को अनुसूचित जाति की सूची में परिभाषित करके अनुमन्य सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया गया था ।ज्ञातव्य हो कि 2012 में उ0प्र0 की 17 पिछड़ी जातियों (कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी तथा मछुआ) को अनुसूचित जाति की सूची में परिभाषित करके तत्सम्बन्धी सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने के उद्देश्य से उ0प्र0 शासन गोपन अनुभाग-1 द्वारा तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री की अध्यक्षता में 05 सदस्यीय मंत्रिपरिषद की उप समिति का गठन किया गया था।
उप समिति द्वारा यह संस्तुति की गई थी कि उ0प्र0 की 17 पिछड़ी जातियों (कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी तथा मछुआ) को अनुसूचित जाति में सम्मिलित किए जाने की सभी पात्रताएं/योग्यताएं रखती हैं। अतः इस समिति की यह संस्तुति है कि उपरोक्त 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल कर लिया जाए। इसके लिए अनुसूचित जाति एवं जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा कराए गए सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक अध्ययन की रिपोर्ट तथा भारत सरकार द्वारा मांगी गई 18 बिन्दुओं की सूचना भारत सरकार को प्रेषित कर दिया गया था ।
इस आदेश को केंद्र सरकार ने अपनी सहमति प्रदान नहीं की।
किंतु जब इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ में इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश जारी किया तो विलय की इस प्रक्रिया में लोगों को अधिक विश्वास दिखा क्योंकि केंद्र में भी बीजेपी की सरकार थी इसलिए राज्य सरकार का समर्थन में केंद्र सरकार का आना तय था किंतु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ राजनीतिक उठापटक और कोर्ट कचहरी के आदेशों ने इस बार भी ओबीसी की इन 17 जातियों को एससी में सम्मिलित नहीं होने दिया