जिन बैंकों को कभी अर्थव्यवस्था की रीढ़ समझा जाता था क्या वाकई वो इतने बीमार हो गए हैं कि सरकार के पास उन से छुटकारे का ही एकमात्र उपाय बचा है अगर ऐसा है तो यह वाकई फिक्र करने की बात है साल 2008 में जब पूरी दुनिया मंदी की चपेट में आ गई थी तब उस समय देश के वित्त मंत्री रहे प्रणव मुखर्जी ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा था कि देश में मजबूत बैंकिंग सिस्टम के दम पर ही मंदी के संकट का मजबूती के साथ सामना है किया दुनिया के बड़े-बड़े देशों में वित्त संकट पैदा हुए थे उस समय लेकिन हम तब भी बचे हुए थे क्योंकि हमने अपने बैंकों का राष्ट्रीयकरण पहले ही कर दिया था लेकिन अब इन्हीं बैंकों का बैलेंस शीट इतना बिगड़ गया है कि सरकार इनसे छुटकारा पाना चाहती है इगो सिस्टम के ओवरहॉलिंग के लिए सरकार बैंकों में हिस्सेदारी बेचने की तैयारी कर रही है सरकार इस के लिए इन बैंकों के खराब कर्ज यानी NPA को जिम्मेदार ठहरा रही है इससे बैंक लगातार घाटे में जा रहे हैं और इस संकट से निकलने के लिए सरकार को मैनेजमेंट में बदलाव ही एकमात्र उपाय नजर आ रहा है। खबर यह है कि केंद्र सरकार ने 4 सरकारी बैंकों को निजी हाथों में सौंपने के लिए शॉर्टलिस्ट भी कर लिया है। इनमें से 2 बैंकों का निजीकरण 2021-22 में और बाकी 2 बैंकों का निजीकरण इसके बाद के वित्तीय वर्ष में किया जाए सरकार ने भी इन चारों बैंकों के नाम का ऐलान तो नहीं किया है पर
अनुमानन इसमें चार बैंकों को निजी हाथों में सौंप जा सकता हैं
1 बैंक ऑफ महाराष्ट्र
2 बैंक ऑफ इंडिया
3 इंडियन ओवरसीज बैंक
4 सेंट्रलबैंक बैंक ऑफ इंडिया
बताया जा रहा है कि निजी करण का जोखिम परखने के लिए सरकार शुरू में छोटे बैंकों को प्राइवेट कंपनी को सौंपेगी अगर यह प्रयोग सफल रहा तो आने वाले वर्षों में बड़े बैंकों का भी नंबर आ सकता है
आइए जानते हैं बैंकों में सरकार की कितने % हिस्सेदारी है
फिलहाल बैंकों में सरकार का कितना शेयर है इस पर भी नजर डाल लेते हैं 10 बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी 70 फीसद ज्यादा है वही 8 बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 80 फीसदी से ज्यादा है और 3 बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ज्यादा है(अनुमान) बैंक में अपनी हिस्सेदारी बेचकर सरकार तो पैसा कमा लेगी बैंक खरीदने वाली कंपनियां भी मुनाफा कमाने का रास्ता खोज लेंगी पर सवाल यह है कि इन बैंकों के ग्राहकों का क्या होगा नौकरी करने वालों का क्या होगा रोजगार की नई उम्मीदों का क्या होगा हालांकि जानकार कहते हैं कि निजी करण से ग्राहकों के खाते प्रभावित नहीं होते बैंक अपनी सर्विस पहले की ही तरह रखता है और लोन की दरें भी ज्यादा नहीं बदलती पर बात सिर्फ इतनी ही नहीं है विकास को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी बैंकों को हमेशा क्रेडिटर के तौर पर देखा जाता रहा है यह दूरदराज के कम प्रॉफिट वाले इलाकों को भी बैंकिंग सुविधा मुहैया कराते हैं छोटे कारोबारियों को आसानी से कर्ज भी देते हैं पर निजी बैंकों का ध्यान सिर्फ प्रॉफिट पर होता है।